Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Best Ghalib Shayari in Hindi: जब भी उर्दू अदब की बात होती है, तो सबसे पहले ज़हन में जो नाम आता है, वह है Ghalib Shayari। मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी ने न केवल उर्दू साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भावनाओं की एक अनोखी दुनिया भी रची। उनकी शायरी में दर्द, मोहब्बत, हसरत और फिलॉसफी का जो मेल है, वह उन्हें दूसरों से अलग करता है। आज भी जब दिल किसी एहसास को बयान करना चाहता है, तो लोग सबसे पहले Mirza Ghalib Shayari का सहारा लेते हैं।

Ghalib Ki Shayari हर दौर के लोगों को अपनी गहराइयों से छूती है। चाहे वह इश्क की बात हो, तन्हाई की रातें हों या फिर जिंदगी के सवाल — ग़ालिब के लफ्ज़ों में हर जज़्बात को एक खास शक्ल मिलती है। खासकर Ghalib Shayari in Urdu में जो मिठास और गहराई है, वह सीधे दिल में उतर जाती है। ग़ालिब का अंदाज-ए-बयाँ उन्हें सदियों बाद भी सबसे अलग और सबसे पास बनाता है।

आजकल लोग Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi को भी बहुत पसंद करते हैं। जिन लोगों को उर्दू पढ़ना नहीं आता, वे हिंदी ट्रांसलिटरेशन में ग़ालिब की नज़ाकत और भावनाओं का स्वाद लेते हैं। यही वजह है कि Mirza Ghalib Ki Shayari का अनुवाद हिंदी में भी बहुत लोकप्रिय हो गया है। चाहे फेसबुक स्टेटस हो, इंस्टाग्राम कैप्शन हो या फिर व्हाट्सएप स्टोरी, ग़ालिब की शायरी हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज कराती है।

Ghalib Shayari in Hindi भी उतनी ही असरदार होती है, जितनी उर्दू में। कई लोगों के लिए हिंदी भाषा में ग़ालिब को पढ़ना एक नई तरह की राहत लेकर आता है। ग़ालिब के शेर जिंदगी को नए मायने देते हैं, और इंसान को खुद से रुबरू कराते हैं। चाहे वो मोहब्बत में टूटे दिल की बातें हों या फिर जिंदगी के उलझे रास्ते — हर जगह Ghalib Shayari on Love का एक खास जादू चलता है।

अगर बात इश्क के दर्द को बयान करने की हो, तो Ghalib Shayari on Love in Urdu सबसे बेहतरीन मिसाल बन जाती है। ग़ालिब की मोहब्बत न सिर्फ अल्फाज़ों में जीती है, बल्कि हर पढ़ने वाले के दिल में एक अलग कहानी लिखती है। आज भी लोग Mirza Ghalib Shayari in Hindi को गुनगुनाते हैं, सुनाते हैं और अपने जज़्बातों को इन लफ्जों के जरिए दुनिया के सामने रखते हैं।

Ghalib Shayari

ghalib ki shayari


हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
ज़िंदगी से यही शिकवा है हर पल,
कि जो मिला नहीं वो ही सबसे ज्यादा पसंद निकले।

दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार,
या इलाही ये माजरा क्या है।

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
जो लगाए न लगे और बुझाए न बने।

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के बहलाने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।

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Mirza Ghalib Shayari

mirza ghalib shayari


इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
हर वक्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे,
तू भी कभी सोच, तुझमें भी कोई ग़म होगा।

तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान,
झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त,
दर्द से भर न आए क्यों।

कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती।
मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।

इश्क़ पर ज़ोर नहीं, ये वो आतिश ग़ालिब,
जो लगाए न लगे और बुझाए न बने।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
इमाँ मुझे रोके है तो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे।

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Ghalib ki Shayari

mirza ghalib ki shayari


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन,
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।
जो तुझ बिन नहीं जी सकते,
हम वो लोग हैं जो मर के भी तेरे नहीं हो पाए।

हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त,
दर्द से भर न आए क्यों।

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
दिल को बहलाने का ग़ालिब ये खयाल अच्छा है,
जन्नत की हक़ीक़त क्या है?

वफ़ा के नाम पे खुद को मिटा दिया हमने,
ग़ालिब के अशआर में जी लिया हमने।
तेरा ज़िक्र जब भी किया,
हर मिसरे में खुद को पा लिया हमने।

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
किसी की मुस्कुराहटों में थी ज़िंदगी हमारी,
उसी के ग़म में हमने खुद को खो दिया।

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Ghalib Shayari in Urdu

ghalib shayari in urdu


Ishq ne Ghalib naakaam kar diya,
Har khushi se dil ko khaali kar diya.
Jis raah pe chala tha khudi ke liye,
Usi raah ne mujhe behaal kar diya.

Dil dhoondhta hai phir wahi fursat ke raat din,
Ghalib ke alfaz jese raaz bhare seheen.
Na tha kuch toh khuda tha, kuch na hota toh khuda hota,
Duboya mujhko hone ne, na hota main toh kya hota.

Bazm mein tanha tha, tanha mein bazm thi,
Ghalib ki har baat mein kuch khas si jazb thi.
Na tha koi humsafar, na thi koi manzil,
Phir bhi har mod par ek dard saaz thi.

Aansuon ka silsila bhi ab thamta nahi,
Gham-e-dil ka ye fasana kabhi khatam hota nahi.
Ghalib ki tarah hum bhi hairaan hain khud pe,
Zindagi se koi shikwa bhi ab banta nahi.

Kaha Ghalib ne sach, ishq asaan nahi,
Jism se rooh tak ka ye safar armaan nahi.
Jisne bhi chaha dard hi paaya,
Woh mohabbat thi ya koi imtihaan nahi.

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Heart Touching Mirza Ghalib Shayari in Hindi

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इश्क़ की सज़ा भी मिली और तमाशा भी हुआ,
ग़ालिब के शेरों में हर दर्द बयाँ हुआ।
जिसे पाया नहीं हमने उम्र भर,
उसी का नाम हर साँस में समा गया।

दर्द जब कलम से निकला ग़ालिब की तरह,
हर अल्फ़ाज़ एक ज़ख्म बन गया।
जिसे लोग महज़ शायरी कहते हैं,
वो मेरी ज़िंदगी की दास्तान बन गया।

ग़ालिब के अशआर दिल को छू जाते हैं,
हर लफ़्ज़ में जैसे कोई आईना दिखाते हैं।
ये शायरी नहीं महज़ अल्फ़ाज़ हैं,
जिनमें हम अपना गुज़रा वक़्त पाते हैं।

ग़ालिब का नाम हो और दिल न धड़के,
ऐसा तो मुमकिन नहीं।
उनकी शायरी में जो जादू है,
वो और कहीं नहीं।

कुछ इस अदा से ग़ालिब ने दर्द को बयान किया,
कि ज़ख्म भी रो पड़े और दिल मुस्कुरा दिया।
उनके कलाम में जो सच्चाई थी,
वो आज भी हर दिल को हिला दिया।

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Mirza Ghalib ki Shayari

ghalib shayari


दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
डरता हूं देख कर दुनिया की बेरुखी ‘ग़ालिब’,
कि अब मोहब्बतों में भी सौदागर निकलते हैं।

न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता।

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

कुछ इस तरह तेरी पलकों पे सजा रखा है,
तेरे ख्वाबों को आंखों में बसा रखा है।
तू चले भी जाए अगर दूर हमसे,
तेरी यादों को दिल में जिंदा रखा है।

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Ghalib Shayari in Hindi

ghalib shayari in hindi

 


हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
कुछ दर्द थे जो बयान न हो सके,
बस वही थे जो मेरी रूह से निकलते थे।

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों,
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।
इश्क़ में जीना मुश्किल है ‘ग़ालिब’,
पर मरने की तमन्ना भी अब सताए क्यों।

न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
तेरा ना होना भी क्या कमाल है,
तू पास होते हुए भी हर हाल में दूर होता।

इश्क़ पर ज़ोर नहीं, ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
दिल जलता रहा तेरी यादों में,
पर कोई आहट न आई तेरे नाम की।

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता।
तेरे जाने का ग़म कुछ इस तरह सहा हमने,
कि ज़िंदगी का हर पल सवाल होता।

Ghalib Shayari on Love

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इश्क़ ने ग़ालिब बर्बाद कर दिया,
हर खुशी को ग़म में तब्दील कर दिया।
जिसे चाहा उसी ने रुला दिया,
और हमारी तन्हाई को मसीहा बना दिया।

दिल दिया उसको जिसने तोड़ा हर बार,
ग़ालिब की तरह बस इश्क़ को पूजा बारम्बार।
जो समझ न सका दिल का आलम,
उसने ही दिल को सबसे ज़्यादा ज़ख़्म दिया।

इश्क़ वो दरिया है जिसमें डूब कर भी,
प्यास बुझती नहीं ग़ालिब।
हर लहर एक सज़ा सी लगती है,
और किनारा भी मंज़िल नहीं होता।

ग़ालिब कहते हैं इश्क़ आसान नहीं,
बस इतना समझ लो आग का दरिया है।
डूब जाना ही नसीब होता है यहां,
वरना किनारे पर सब तैरना जानते हैं।

उसकी यादों का मौसम कुछ ऐसा आया,
हर लम्हा बस ग़ालिब याद आया।
इश्क़ किया था दिल से हमने,
पर उसने हर ख्वाब अधूरा कर जाया।

Ghalib Shayari on Love in Urdu

ghalib shayari on love in urdu


عشق نے غالب کو ناکام کر دیا،
ہر خوشی کو زخم کھا کر دیا۔
دل کی ہر بات محبت تھی،
اور اُس محبت کو چھپ کر دیا۔

ہر ایک راہ میں اُس کا ہی چہرہ تھا،
جو غالب نے اپنے دل میں بسایا تھا۔
محبت کی درد بھری راہ میں،
ہر موڑ پہ اُس کا ہی نام تھا۔

محبت کا سفر بھی عجیب تھا،
غالب کی دعا بھی قسیم تھا۔
جو پیار میں تھا، اُس کی زندگی میں،
ہر خوشی کا رنگ بھی پیار کا تھا۔

تم سے جدا ہو کر غالب نے جانا ہے،
پیار کے جذبات کبھی کم نہیں ہوتے۔
جس نے دل سے اُسے چاہا تھا،
وہ دل کبھی اُس کا تھا نہیں۔

محبت کو محبت سے سمجھا تھا غالب،
پر یہ نہ سمجھ پایا کہ یہ خوشیوں کا سفر ہے۔
دل کی بات جو کہ نہ سکے،
وہ شاعری کی کس تکرا ہے۔

Mirza Ghalib Shayari in Hindi

ghalib ki shayari

 


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
दिल की बात जुबां तक लाने की कोशिश की,
मगर तेरी ख़ामोशी में ही आरज़ू क्या है।

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न ग़र्क-ए-दरिया,
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता।
इस इश्क़ की गलियों में कोई मोड़ नहीं,
जो गया वो वापस न आया, ये ही इतिहास होता।

दर्द का रिश्ता बहुत पुराना निकला,
हर खुशी से ये बेगाना निकला।
ग़ालिब की शायरी जब पढ़ी हमने,
तो अपना ही अफ़साना निकला।

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
इश्क़ ने भी हमको आज़माया बहुत,
पर हमने हर ग़म को गले से लगाया बहुत।

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
ग़ालिब की तर्ज़ में कुछ कहने लगा हूं मैं,
हर लफ़्ज़ अब अशआर सा लगने लगा है।

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